बयूरो(डेस्क): पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि चारदीवारी की भीतर किसी व्यक्ति का अपमान या धमकी एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध नहीं है।
जब तक किसी का अपमान मंशा के साथ सार्वजनिक स्थान पर नहीं किया जाता तब तक यह अपराध नहीं है। इन टिप्पणियों के साथ ही हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को इस मामले में अग्रिम जमानत दे दी।
हत्या और एससी/एसटी एक्ट को लेकर अग्रिम जमानत याचिका दाखिल करते हुए राजिंदर कौर ने लुधियाना की अदालत के आदेश को चुनौती दी थी।
याचिका में बताया गया कि याची पर आरोप है कि उसने बैंक्वेट हॉल खरीदने को लेकर सेवक सिंह की औकात पर सवाल उठाया था और जातिवादी टिप्पणी की थी।
याची के पति पर सेवक सिंह को कार से कुचल कर हत्या का आरोप है। याची ने कहा कि एफआईआर में उसकी कोई भूमिका नहीं है सभी आरोप पति पर हैं।
याची की भूमिका मृतक की औकात को लेकर टिप्पणी व जाति सूचक शब्द करने को लेकर है।
कोर्ट ने कहा कि घटना बैंक्वेट हाॅल में तब हुई थी जब केवल शिकायतकर्ता, अपीलकर्ता और उसके परिवार के सदस्य उपस्थित थे।
ऐसे में यह सार्वजनिक स्थल का मामला नहीं है जहां आम लोग मौजूद हों। सवाल उठता है कि क्या ऐसी परिस्थितियों में एससी/एसटी अधिनियम की धाराएं लागू होती हैं।
एक्ट का अवलोकन करते हुए हाईकोर्ट कहा कि किसी व्यक्ति को दंड का पात्र बनाने के लिए घटना के समय सार्वजनिक स्थान या सार्वजनिक दृश्य के भीतर होनी जरूरी है।
इस मामले में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जो साबित करे कि याची को मृतक सेवक सिंह की जाति का पता था।
साथ ही याची ने किसी विशेष जाति का नाम नहीं लिया जिससे अपमान का इरादा साबित हो।
हाईकोर्ट ने हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि एक्ट का उद्देश्य उल्लंघन करने वालों को दंडित करना है,
जो समाज के कमजोर वर्ग के खिलाफ अपमान और उत्पीड़ने करते हैं लेकिन अदालत को इस बात पर विचार करने से रोका नहीं गया कि लगाए गए आरोपों से प्रथम दृष्टया एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध बनता है या नहीं।
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